जनजातीय सामाजिक व्यवस्था
हेल्लो, कैसे हो आप आज हम जानेगे छत्तीसगढ़ के जनजातीय सामाजिक व्यवस्था के बारे में। हम जनजातीय सामाजिक व्यवस्था | Tribal Social System in Hindi के बारे में जानेंगे। भारत के आदिवासी समाज, खासकर छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं और संस्थागत ढांचे के लिए जाना जाता है। कबीले, क्षेत्रीय और पारिवारिक संबंध आदिवासी समुदायों के लिए संगठनात्मक ढांचे के रूप में काम करते हैं। प्रथागत कानून और पारंपरिक संस्थाएँ, जैसे ग्राम सभाएँ और पंचायतें, अक्सर उनकी सामाजिक व्यवस्थाओं को नियंत्रित करती हैं।
हर जाति के पास अंतर-गांव संघर्ष, यौन अपराध और अजनबियों के बिना ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करने जैसे मुद्दों को हल करने का अपना तरीका है। चर्चा के बाद निर्णय लिया जाता है। कृषि और धार्मिक अनुष्ठान अक्सर ग्रामीण मामलों से जुड़े होते हैं। समुदायों में मेले, त्यौहार आदि आयोजित करने का निर्णय भी सहयोगी होता है। इससे पता चलता है कि अतीत में समुदायों में क्यों कोई बहस नहीं हुई थी। सभी समस्याओं को सुलझाने के लिए समझौता किया गया।
जनजातीय संस्कार
जन्म संस्कार –
जबकि आदिवासी लोग बच्चे के जन्म को प्राकृतिक घटना मानते थे, गोंड लोग इसे झालना देवी और दुल्हा देव का आशीर्वाद मानते थे। मां को छह दिनों तक अशुद्ध माना जाता है। छठा दिन छठी पूजन को समर्पित है। इस दिन मां और नवजात शिशु को नहलाया जाता है। इसके बाद भोजन का कार्यक्रम बनाया जाता है।
नामकरण –
इस संस्कार को प्रत्येक जाति अलग-अलग समय पर करती है, और यह बच्चे के जीवन का पहला संस्कार होता है। शिशु को दिन, महीना, नदी, पहाड़ या विशिष्ट घटना का नाम दिया जाता है। नामकरण दिवस पर माँ नहाती है, घर साफ करती है और नए मिट्टी के बर्तन देती है। गोंड जनजाति अपने बच्चों को नामकरण के समय दिए गए नाम नहीं बोलती। वे उसे उपनाम देते हैं। नामकरण के दौरान गोंड जनजाति के पुजारी सहायता देते हैं।
अतिथि संस्कार –
“अतिथि देवो भव” की कहावत आदिवासी सभ्यता में सटीक है। वास्तव में आगंतुक महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक घर में एक साफ-सुथरा, छोटा अतिथि कक्ष है। वह कमरा खुलता है जब कोई आता है। अतिथि के जाने पर भी एक खास रात्रिभोज की योजना बनाई जाती है। बकरियों या मुर्गियों का चावल खाने के अलावा, कई जनजातियाँ शराब पीती हैं।
विवाह पद्धति –
आदिवासी समाजों में एक विवाह करना और बहुविवाह करना दोनों आम हैं। विभिन्न जातियों में विवाह के नियम अधिक जटिल हैं। फिर भी, विभिन्न जनजातियों में विवाह की अलग-अलग परंपराएँ हैं। बस्तर में एक विवाह को पेदुल कहते हैं।
मैदानी क्षेत्र के जनजातियों में विवाह
मैदानी क्षेत्रों में विवाह पुरोहित द्वारा कराया जाता है। लेकिन आम तौर पर, विवाह में इन्हें पुजारियों की आवश्यकता नहीं होती। मुख्य रूप से, इनमें क्रमिक विवाह, सेवा विवाह, अपहरण विवाह, गंधर्व विवाह, हट विवाह और विनिमय विवाह प्रथाएं आम हैं। जिसका विवरण निम्नानुसार –
क्रय विवाह –
दुल्हन को पाने के लिए दूल्हे का पक्ष अक्सर लड़की के परिवार को धन देता है, जिसे आम तौर पर “परिंग धन” कहा जाता है। पैसे के अलावा जानवरों को देना या जानवरों के बदले नकद देना भी कुछ जनजातियों में किया जाता है।
सेवा विवाह –
यदि कोई व्यक्ति वधू की कीमत नहीं चुका सकता, तो वह अपने भावी ससुर के घर में रहकर उनकी सेवा करता है। वह ऐसा करके अपने ससुर का प्यार जीतने की उम्मीद करता है और अपनी आय बढ़ाता है। इस प्रथा का नाम है लड़के का लमसेना जाना।
गंधर्व विवाह –
गंधर्व विवाह स्वतंत्र विवाह होते हैं। गोंड उपजाति में ऐसे विवाह आम हैं। लड़के को इस तरह के विवाह में सभी परंपराओं का पालन करना होगा। एक विवाहित महिला किसी अमीर व्यक्ति से शादी कर सकती है; इस तरह की शादी को “पोटा विवाह” कहते हैं।
अपहरण विवाह –
अपहरण के कारण अक्सर आदिवासी शादी होती है। इसे पायसोतुर कहा जाता है। लड़के को जाति भोज देना चाहिए, ताकि विवाह वैध माना जा सके।
विधवा विवाह –
साथ ही, आदिवासी समाजों में विधवा विवाह की दर अधिक है। इस शादी को अर उतो कहते हैं। दुल्हन की लागत कम होती है जब विधवा विवाह करती है।
विनिमय विवाह –
जब दो परिवार अपनी बेटियों को एक दूसरे को देते हैं, तो विवाह को “विनिमय” विवाह कहा जाता है, बिना वधू की कीमत का भुगतान किए जाने के। छत्तीसगढ़ में इसे ‘गुरांवट’ कहते हैं।
हठ विवाह –
जब कोई महिला अपनी पसंद के किसी युवक के घर में घुसती है और धमकियों के बावजूद वहाँ रहती है, तो आम तौर पर दोनों पक्षों को विवाहित माना जाता है। इस तरह की शादी को हठ विवाह कहा जाता है। कोरबा में इस शादी को “दुकू विवाह” कहते हैं। इसे बागा ‘पथूल विवाह’ कहते हैं।
हठ विवाह –
जब कोई महिला अपनी पसंद के किसी युवक के घर में प्रवेश करती है और धमकियों के बावजूद वहाँ रहती है, तो दोनों पक्षों को विवाहित माना जाता है। इस प्रकार की शादी को हठ विवाह कहते हैं। कोरबा में इस शादी को “दुकू विवाह” कहा जाता है। इसे बागा कहते हैं।
गोत्र
आदिवासी समाज में गोत्र महत्वपूर्ण है। हर जनजाति में कई गोत्र हैं। अलग-अलग देवता विभिन्न गोत्रों का आधार हैं।इनमें चार गोत्र प्रमुख माने गये हैं –
1. नालुंग पेंग – चार देवताओं को मानने वाले
2. सयुंग पेंग – पांच देवताओं को मानने वाले
3. सारूंग पेंग – छ: देवताओं को मानने वाले
4. येरूंग पेंग – सात देवताओं को मानने वाले
कबीले की संरचना उनकी शक्ति, सुरक्षा और संगठन प्रदान करती है। कबीले के नाम अक्सर नदियों, पहाड़ों, पेड़ों और अन्य प्राकृतिक विशेषताओं से लिए जाते हैं, जैसे कुंजम (बकरी), कुजूर (लता), मरकम (आम), लकरा (शेर), तिर्की (बड़ा चूहा), नेताम (कछुआ)।
जनजाति युवा गृह
उनकी विशेषताओं में उनकी प्राचीनता और आदिवासी संस्कृतियों की मूल संस्थाएँ हैं। यह भी युवा छात्रावास है। इस तरह की आदिवासी संस्थाओं का सांस्कृतिक महत्व है। युवा छात्रावास विवाहित लड़के-लड़कियों का एक समूह है, जिसका काम यह सुनिश्चित करना है कि उनका मानसिक विकास उनकी संस्कृति से मेल खाता है और उन्हें उनके समुदाय के रिवाजों से परिचित कराना है। भारत के कोयानक नागा, मुंडा, ओरांव और मुरिया भोटिया में ऐसे युवा छात्रावास के अवशेष पाए जाते हैं। युवा जनजातियों का मनोरंजन का मुख्य स्रोत है।
निष्कर्ष:
संक्षेप में, आदिवासी सामाजिक व्यवस्था भारत में रहने वाले स्वदेशी समुदायों के जीवन को नियंत्रित करने वाले संस्थाओं, रिश्तों और अनुष्ठानों के व्यापक नेटवर्क को कहते हैं। आधुनिकीकरण और बाहरी हस्तक्षेप के बावजूद, ये प्रणालियाँ मजबूत सांप्रदायिक संबंधों, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक संरक्षण को बढ़ावा देते हैं।
वर्तमान चुनौतियों के बावजूद, आदिवासी सामाजिक संरचना आपको सामुदायिक स्वामित्व, सहकारी जीवन और प्राकृतिक जगह के साथ समन्वय का महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है। उन्हें सशक्त बनाने के किसी भी प्रयास में, आदिवासी समुदायों की अनूठी सांस्कृतिक और सामाजिक संरचनाओं का सम्मान करना और उन्हें बचाना चाहिए।
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