शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व
हेल्लो, कैसे हो आप? आज हम जानेगे शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व के बारे में। हम शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व | Importance of Education Psychology in Hindi के बारे में जानेंगे। शिक्षा मनोविज्ञान प्राचीन काल से ही शिक्षा प्रक्रियाओं से जुड़ा हुआ है। शिक्षा मनोविज्ञान एक विषय है जो शिक्षा से जुड़ा हुआ है। यह मनोवैज्ञानिक रूप से शिक्षा को देखता है। शिक्षा मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो बालक को शिक्षा वाले वातावरण में शिक्षित करता है। वास्तव में, शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा को एक नई दिशा दी है और एक आंदोलन का जन्म दिया है।
इस आन्दोलन ने शिक्षण को वैज्ञानिक बनाया है। डॉ. ब्लेयर ने कहा कि “आधुनिक अध्यापक की सफलता प्राप्त करने के लिये ऐसा विशेषज्ञ होना चाहिये, जो बालक समझे कि वे कैसे विकसित होते हैं, सीखते हैं तथा समायोजित होते हैं।” मनोवैज्ञानिक विधियों से अनजान कोई शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर सकता। शिक्षक को विषय को पढ़ाने में शिक्षा मनोविज्ञान के ज्ञान से निम्नलिखित लाभ मिलता है –
स्वयं का ज्ञान तथा तैयारी –
एक व्यक्ति को किसी भी काम में सफलता मिल सकती है, जब वह उसे करने की योग्यता हासिल कर ले। शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से शिक्षक अपने स्वभाव, बुद्धि स्तर, व्यवहार और क्षमता का पता लगा सकते हैं। यह ज्ञान उसे शिक्षण में सफल बनाता है।
इसलिए, यह इसकी व्यावसायिक भूमिका की तैयारी में मदद करता है। प्रो. स्किनर कहते हैं, “शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापकों की तैयारी की आधारशिला है।”
बाल विकास का ज्ञान –
पुराने समय में बालक न होकर शिक्षक शिक्षा का केंद्र था, लेकिन आज यह बदल गया है। बालक की रुचि, योग्यता और क्षमता अब पाठ्यक्रम और शिक्षण प्रणाली का निर्धारण करती हैं।
इस प्रकार मनोविज्ञान के अध्ययन से शिक्षक बाल विकास की कई अवस्थाओं को समझ सकते हैं। वह इन परिस्थितियों में बालक की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विशेषताओं को जानता है और उसके अनुसार व्यवहार करता है।
बाल स्वभाव व व्यवहार का ज्ञान –
शिक्षा मनोविज्ञान बालक का व्यवहार और स्वभाव जानता है। वह इन दोनों बातों के आधार पर बालक की मूल प्रवृत्तियों से परिचित होने के कारण उनका स्वयं शिक्षण और मार्गदर्शन करने में सफल होता है।
प्रो. रायबर्न कहते हैं, “हमें बाल स्वभाव और व्यवहार का जितना अधिक ज्ञान होता है, उतना ही प्रभावपूर्ण बालक से हमारा संबंध होता है। “यह ज्ञान मनोविज्ञान से प्राप्त हो सकता है। यही स्वभाव और व्यवहार पाया जाता है।”
बालकों का ज्ञान –
शिक्षक अपने काम का कुशलतापूर्वक पालन तभी कर सकता है जब उसे अपने विद्यार्थियों का पूरा ज्ञान है। वह अपने विषय और शिक्षण में अद्भुत है, लेकिन पग-पग पर निराशा को अपना साथी बनाना पड़ता है अगर उसे अपने विद्यार्थियों का ज्ञान नहीं है।
विषय और शिक्षण में योग्यता होना एक बात है, लेकिन विद्यार्थियों की रुचियों और क्षमताओं के अनुकूल बनाना दूसरी बात है। डगलस और हालैन्ड ने कहा कि, “शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध छात्रों के अध्ययन से है, अत: यह उन व्यक्तियों के ज्ञान का महत्वपूर्ण अंग होता है, जो शिक्षण का कार्य करना चाहते हैं।”
बालकों की आवश्यकता का ज्ञान –
विद्यालयों में पढ़ने वाले बालकों को प्रेम, आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और अपने निर्णयों की अनुमति चाहिए। यदि उनकी ये आवश्यकताएँ पूरी की जाती हैं, तो वे संतुष्ट होते हैं और स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं।
शिक्षण मनोविज्ञान विद्यार्थियों को इन आवश्यकताओं से अवगत कराता है। स्किनर ने कहा कि शिक्षक शिक्षा मनोविज्ञान से प्रत्येक विद्यार्थी की विशिष्ट आवश्यकताओं के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं।
बालकों का चरित्र निर्माण –
शिक्षा मनोविज्ञान बालकों को चरित्र बनाने में मदद करता है। यह शिक्षक को उन तरीकों के बारे में बताता है जिन्हें अपने विद्यार्थियों में नैतिक गुणों का विकास करने के लिए उपयोग कर सकते हैं।
प्लेटो ने कहा, “यह तब तक सम्भव नहीं, जब तक कि वह मानव व्यवहार से या स्वभाव से भली-भाँति परिचित न हो। “शिक्षक मानव स्वभाव का वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहिए।”
वैयक्तिक विभिन्नताओं का ज्ञान-
मनुष्यों की रुचियों, योग्यताओं और क्षमताओं में अंतर पाया जाता है, जैसा कि मनोविज्ञान अनुसंधान ने दिखाया है। ऐसे ही बालकों को शिक्षक को शिक्षा देनी चाहिए।
वह मनोविज्ञान का अध्ययन करके उनकी विभिन्नताओं से पूरी तरह परिचित होने पर ही इस काम में सफल हो सकता है। कुप्पूस्वामी ने कहा कि मनोविज्ञान एक शिक्षक को कई धारणाओं और सिद्धान्तों को प्रदान करके उसकी उन्नति में योगदान देता है।
कक्षा की समस्याओं का समाधान –
प्रत्येक शिक्षक को अपनी कक्षा में अनुशासनहीनता, पिछड़ापन, समस्यात्मक बच्चे और बाल अपराध का सामना करना पड़ता है। ये परेशानियाँ परिवार, वंश, समाज से आती हैं। शिक्षा मनोविज्ञान इनके नियंत्रण के तरीके बताता है।
यही नहीं, आज स्कूलों में इन समस्याओं का समाधान करने के लिए निर्देशन केंद्र बनाए जा रहे हैं। सुरेश भटनागर ने इस बारे में कहा कि, “शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक की कक्षागत समस्याओं के मूल कारण, समस्या तथा समाधान का अवसर देता है।”
शिक्षण पद्धति में परिवर्तन-
पुराने तरीके में शिक्षक रटने पर जोर देते थे। उन्होंने सोचा कि रटने से बुद्धि बढ़ती है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों ने रटने की अनौचित्यता साबित की है।
आज कई मनोवैज्ञानिक शिक्षण पद्धतियों का विकास हुआ है, जो कहते हैं कि शिक्षण बालक की अन्तर्निहित शक्तियों को विकसित करता है और उनकी अभिव्यक्ति को माध्यम देता है। किन्डर गार्टन, डाल्टन योजना, प्रोजेक्ट पद्धति और बेसिक शिक्षा जैसे शिक्षण तरीके बालक का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करते हैं।
निष्कर्ष:
यह समझने में कि एक व्यक्ति कैसे सीखता है, विकसित करता है, बढ़ाता है, शिक्षा मनोविज्ञान महत्वपूर्ण है। शिक्षा नीति, सुधार, शिक्षक-छात्र संबंधों में सुधार, छात्रों के परिणामों, व्यक्तिगत अंतर और प्रभावी शिक्षण की जानकारी देना इसका महत्व है।
शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांतों को लागू करके शिक्षक और नीति निर्माता की सहायक से सीखने का माहौल बनाने की कोशिश करते हैं, जो सफलता को बढ़ावा दे सकते हैं और जीवन भर सीखने को बढ़ावा दे सकते हैं, जो सामाजिक परंपरा और समाज के भविष्य को उजागर कर सकते हैं।
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