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छत्तीसगढ़ का प्रमुख ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल | Major historical and archaeological sites of Chhattisgarh in Hindi

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Major historical and archaeological sites of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ का प्रमुख ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल

हेल्लो, कैसे हो आप? आज हम जानेगे छत्तीसगढ़ का प्रमुख ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल के बारे में। हम छत्तीसगढ़ का प्रमुख ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल | Major historical and archaeological sites of Chhattisgarh in Hindi के बारे में जानेंगे। छत्तीसगढ़, मध्य भारत का राज्य, ऐतिहासिक और पुरातात्विक सौंदर्य से भरपूर है, जो खोजा जाना बाकी है। राज्य के आसपास कई ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थान इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का गवाह हैं, जिसमें दिलचस्प रॉक शेल्टर और खंडहर से लेकर प्राचीन मंदिर और किले शामिल हैं।

ये स्थान छत्तीसगढ़ के रोचक इतिहास के रहस्यों को बताते हैं, साथ ही राज्य की स्थापत्य कला की सुंदरता और अतीत की कहानियों को दिखाते हैं। हम छत्तीसगढ़ के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थानों की खोज कर रहे हैं क्योंकि हम एक ऐसी यात्रा पर हैं जहाँ इतिहास जीवंत है।

रायपुर

यहीं छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी है। रायपुर का ऐतिहासिक महत्व प्राचीन काल से है, जैसा कि मौजूदा अभिलेखों और ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है। पांचवीं शताब्दी में यहीं पर पांडु वंश का शासन था। इस वंश के पतन के बाद कलचुरी की लाहुरी शाखा ने रतनपुर को राजधानी बनाया।

700 से अधिक वर्षों तक हैहयवंशी कलचुरी छत्तीसगढ़ पर राज करते रहे। रेवाराम का इतिहास बताता है कि ग्यारहवीं शताब्दी में राजवंश के राजा राय ब्रह्मपुरी ने पुराने तालाब को ब्रह्मपुरी नाम देकर रायपुर बनाया था। 1460 में इस राजवंश के राजा ने एक किला बनाया था, जिसके कुछ हिस्से आज भी हैं।

राजिम

राजिम महानदी, पैरी और सोंढुर नदियों के संगम पर स्थित है। इसका नाम छत्तीसगढ़ का प्रयाग है। कमल क्षेत्र, पदमपुर और देवपुर पहले राजिम के नाम थे। राजेश्वर, कुलेश्वर महादेव और राजीव लोचन मंदिर इस स्थान पर हैं। पाँचवीं शताब्दी में बनाया गया था। राजिम एक मंदिर शहर है। इस मंदिर को नल वंश के सम्राट विलतुंग और कलचुरी साम्राज्य के शासक जाज्वल्यदेव प्रथम ने जीर्णोद्धार कराया था।

896 या 1145 ई. का एक शिलालेख मंदिर की दीवार पर है, जो बताता है कि जजवल्यदेव प्रथम के सेनापति जगपाल ने इसे फिर से बनाया था। 14वीं और 15वीं शताब्दी में कुलेश्वर मंदिर बनाया गया था। इसका प्रमाण मंदिर पर लगे शिलालेख से मिलता है। राजिम छत्तीसगढ़ में एक पवित्र स्थान है, जहां हर साल माघ पूर्णिमा पर एक बड़ा मेला होता है।

सिरपुर

यह छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना शहर था और महानदी के तट पर महासमुंद जिले में था। महाभारत काल में इसका नाम चित्रांगदपुर था। छठी शताब्दी ईसा पूर्व में यह ‘श्रीपुर’ कहलाता था। यह संपत्ति का प्रतीक है। यह 5वीं और 8वीं शताब्दी में दक्षिण कोशल की राजधानी थी। बौद्ध अवदान शतक में कहा गया है कि महात्मा बुद्ध इस स्थान पर आए थे।

अशोक ने भी स्तूप बनाया था। दार्शनिक नागार्जुन ने पहली शताब्दी में इस विद्यालय का कुलपति किया था, जैसा कि कई कहानियों से पता चलता है। सातवीं शताब्दी का चीनी खोजकर्ता ह्वेनसांग भारत आया था। उन्होंने उस समय पूरे भारत की यात्रा की थी। यात्रा के दौरान वे श्रीपुर पहुंचे। उस समय बौद्ध धर्म बहुत विकसित हो गया था। उस समय पांडवों का शासन था।

आरंग

रायपुर से कुछ दूरी पर ऐतिहासिक आरंग शहर है। इसकी प्राचीनता का सबूत तालाब, मंदिर, ताम्रपत्र और अभिलेखीय साक्ष्य हैं। आरंग में तीन बड़े मंदिर हैं: महाभारत काल का राजा मंदिर, बाघ देवल मंदिर और महामाया मंदिर। ग्यारहवीं शताब्दी में भांड देवल मंदिर बनाया गया था। तीन जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां इस मंदिर की भीतरी दीवार पर हैं।

आरंग में इन ऐतिहासिक मंदिरों के अलावा भी कई मंदिर हैं; इनमें से सबसे प्रसिद्ध हैं चंडी माहेश्वरी मंदिर, पंचमुखी महादेव मंदिर और पंचमुखी हनुमान मंदिर। दरअसल, आरंग का दूसरा नाम है “मंदिरों का शहर”।

चम्पारण्य

राजिम से चौदह किलोमीटर दूर रायपुर जिले में स्थित है। चंपारण राजपूत क्षेत्र के दक्षिण-पूर्व में है। यह अष्टछाप संप्रदाय के संस्थापक लक्ष्मण भट्ट और वैष्णव संप्रदाय के प्रचारक वल्लभाचार्य की जन्मस्थली है। इनका जन्म वैशाख वदी 11 संवत 1335 विक्रम संवत को हुआ था।

चंपारण्य नाम चंपकेश्वर महादेव ने दिया था। 20वीं शताब्दी में वल्लभाचार्य जी का प्रसिद्ध मंदिर उनके नक्षत्र से बनाया गया था। इस स्थान की छत्तीसगढ़ में बहुत प्रसिद्धि है। यह मार्गदर्शक की श्रद्धा को स्वीकार करता है। इस स्थान पर वल्लभाचार्य का सम्मान करने वाला एक पुराना शिवलिंग भी है।

गिरौदपुरी

यह स्थान बलौदाबाजार जिले में महानदी नदी के उत्तर-पश्चिम में है। यह पवित्र स्थान लाखों जन्मामी सिक्के ढाले गया है। गिरौद धाम, संत गुरु घासीदास का सिद्ध स्थान, देश-विदेश में सनातनी समुदायों का पवित्र स्थान है। 18 दिसंबर को इस जगह मुलायमियों का वार्षिक शानदार मेला होता है।

गुरु निवास गुरु घासीदास का घर गिरौदपुरी में है। गुरु की गद्दी यहाँ है। गुरु घासीदास ने गिरौदपुरी के पास पहाड़ी पर ओरा और घोरा वृक्षों के बीच तपस्या करके ज्ञान प्राप्त किया था। इस स्थान को तपोभूमि कहा जाता है। छाता पर्वत गुरु घासीदास की समाधिस्थल के निकट है। पास ही गुरु घासीदास की पत्नी सुफरा जी का मठ भी है, जिन्होंने अपने बेटे अमरदास को जंगल में खो जाने के दर्द में समाधि ले ली थी।

दामाखेड़ा

बलौदाबाजार जिले में यह सिमगा के पास कबीरपंथियों का प्रमुख तीर्थस्थल है। बारहवें वंश के गुरु उग्रनाम साहेब ने यहाँ कबीर मठ की स्थापना की थी। कबीर आश्रम और समाधि यहाँ दो प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। यहाँ हर साल माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी से पूर्णिमा तक “संत समागम मेला” होता है, जिसमें ज्ञानी भक्तों और श्रद्धालु गुरु के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि देने आते हैं।

खल्लारी

यह पहले खल्ला वाटिका कहलाता था। रायपुर के कलचुरी राजा ब्रह्मदेव के शासनकाल में देवपाल नामक एक मोची ने नारायण मंदिर बनाया था। इसका विवरण यहाँ है। संबंधित शिलालेख बताता है कि महान मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर है।

पाटन

स्थान ऐतिहासिक महत्व रखता है। इन खुदाईयों से कई कल्चुरी मूर्तियाँ मिली हैं। 1995 के आसपास, नींव खोदते समय किसी को 126 चाँदी के सिक्के मिले। हम अभी भी नहीं जानते कि ये सिक्के किस शासक और युग के हैं।

धमधा

धमधा में गोंड भूमि थी। यहाँ बहुत से ऐतिहासिक और पुरातात्विक अवशेष हैं। पौराणिक कहानियों में कहा जाता है कि 1300 के आसपास वीर देव सांड ने धमधा को बसाया और यहां एक किला बनाया था। सिंहद्वार और किले के अवशेष यहाँ हैं। धमधा में अनेक तालाब और मंदिर हैं।

इस स्थान पर मौजूद मंदिरों और तालाबों की संख्या उनकी आयु और ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है। यहाँ भी त्रिमूर्ति महामाया देवी का सिद्ध मंदिर है।

भोरमदेव

यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान आज के कबीरधाम जिले में है, जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में। पुराने समय में, इस क्षेत्र पर नागों का शासन था। छत्तीसगढ़ के खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर राज्य के सबसे प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो अपनी अद्भुत कला और प्रसिद्धि के कारण बहुत प्रसिद्ध है।

इस मंदिर को 1089 ई., संवत 840 में राजा गोपाल देव ने बनाया था। इस मंदिर में नागर शैली की मूर्ति है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन देवताओं, घोड़ों और हाथियों, नटराज, गणेश और नृत्य करते पुरुषों और महिलाओं की चित्रण हैं।

रतनपुर

रतनपुर, छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थान है, जो बिलासपुर से 28 मील दूर है। रतनपुर को कलचुरी के शासक रत्नदेव प्रधान ने बनाया था। उन्होंने इसे तुम्मान के स्थान पर राजधानी बनाया। रतनपुर के कलचुरी राजाओं, जैसे रत्नदेव प्रथम और पृथ्वीदेव प्रथम, ने उसके विकास और सुंदरता को बढ़ाने के लिए कई निर्माण कार्य किए।

हनुमान मंदिर, भैरव मंदिर और कई तालाब कलचुरी काल के हैं। मराठा सम्राट बिंबाजी भोसले ने भगवान राम को समर्पित एक मंदिर बनाया था, जो आज भी राम टेकरी पहाड़ी पर है। रतनपुर में कई तालाब हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध कपिलेश्वर, वहारियता और रत्नेश्वर हैं। रतनपुर में एक प्राचीन किले के अवशेष पाए जाते हैं।

तुरतुरिया

इस स्थान का विशाल इतिहास है। तुरतुरिया का नाम चट्टानों की दरारों से निरंतर निकलने वाली पानी की कलकल ध्वनि से पड़ा है। यहाँ प्राचीन मूर्तियाँ और बौद्ध मठ के अवशेष मिले हैं। यह लव-कुश का जन्मस्थान और ऋषि वाल्मीकि का निवासस्थान है।

मल्हार

मल्हार बिलासपुर जिले का एक महत्वपूर्ण गांव है। यहां मूर्तियां, मंदिर, खंडहर और तालाबों की उपस्थिति इसकी प्राचीनता और ऐतिहासिकता को साबित करती है। इस बस्ती में खाई से चारों तरफ मिट्टी का किला है। वर्तमान अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार, इसका पहला नाम ‘मल्लाशय’ था (कलचुरी राजा पृथ्वीदेव द्वितीय, 1163 ई.) या ‘मल्लाल पाटन’ था (कलचुरी सम्वण, 915)।

निष्कर्ष:

संक्षेप में, छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पुरातत्व स्थल राज्य की वास्तुकला, कला और ऐतिहासिक महत्ता को दिखाते हैं और इसके समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को दिखाते हैं। ये स्थान पीढ़ियों को जोड़ते हुए हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ते हैं। इन अमूल्य वस्तुओं की देखभाल और सुरक्षा करके, हम छत्तीसगढ़ के अतीत को बनाने वाले लोगों और अवसरों को सम्मान देते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि उनकी कहानियाँ हमें आने वाले युगों तक उत्साहित और प्रेरित करती रहेंगी।

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