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छत्तीसगढ़ के प्रमुख जनजाति | Major tribes of Chhattisgarh in Hindi

By Admin

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Major tribes of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ के प्रमुख जनजाति

हेल्लो, कैसे हो आप आज हम जानेगे छत्तीसगढ़ के प्रमुख जनजाति के बारे में। हम छत्तीसगढ़ के प्रमुख जनजाति | Major tribes of Chhattisgarh in Hindi के बारे में जानेंगे। छत्तीसगढ़, मध्य भारतीय राज्य, में कई स्वदेशी जनजातियाँ रहती हैं, प्रत्येक की अपनी संस्कृति, परंपराएँ और रीति-रिवाज हैं। यहाँ एक बड़ी आदिवासी आबादी है क्योंकि राज्य के 30% से अधिक लोग कई जनजातियों से संबंधित हैं।

छत्तीसगढ़ में रहने वाले कई महत्वपूर्ण जनजातियों में गोंड, हल्बा, कमार, बैगा, मुरिया और मारिया शामिल हैं। इन जनजातियों ने अपनी अलग-अलग भाषाओं, रीति-रिवाज़ों और त्योहारों के साथ इस क्षेत्र की विशाल सांस्कृतिक विरासत को जीवंत कर दिया है। वर्तमान युग में इन जनजातियों ने कई चुनौतियों के बावजूद अपनी अलग पहचान बनाए रखी और सफल रहे हैं।

गोंड

सबसे बड़ी जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिणी भाग में रहती है। यह जनजाति द्रविड़ कबीले का हिस्सा है। दरअसल, “गुंड” शब्द तेलुगु शब्द कोड से आया है, जिसका अर्थ है पहाड़। गोंड की अधिकांश जनसंख्या छत्तीसगढ़ बेसिन और बस्तर पठार में रहती है। राज्य पहले गोंडवाना राज्य था।

इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को गोंडवाना भूमि के नाम से जाना जाता था। राजगोंड सर्वश्रेष्ठ गोंड हैं। राजपूत-गोंड प्रेम शायद उनके वंश का कारण था। छत्तीसगढ़ में तीस गोंड शाखाएँ हैं। इनमें अबूझमाड़िया, दंडामी दरिया, अमात गोंड, सबरिया गोंड, सिंघरोलिया गोंड, सरगुजिया गोंड, नागवंशी थाटिया, राजमुरिया, किलभुता, ओझा और एक गोंड मुरिया सबसे महत्वपूर्ण हैं।

हल्वा

यह जनजाति दुर्ग राजनांदगांव जिले में बस्तर रायपुर में है। हल्बा कांकेर जिले के भानुप्रतापुर में रहते हैं। इस जनजाति में बस्तरिया, छत्तीसगढ़िया और मरेठिया उपविभाग हैं। हल्बा जनजाति में नायक, भंडारा, परेट सुरेत और नरेवा हैं। हल्बा एक प्रगतिशील व्यक्ति हैं। हल्बा हल्बी बोलते हैं और मानते हैं कि उनकी मातृभाषा महादेव-पार्वती है।

बस्तर के हल्बा लोगों का कुलदेवता ‘बरग’ है, जो एक (थोक) के नाम पर नामित है। कबीर पंथी हल्बा जनजाति का एक बड़ा हिस्सा हैं। दुर्गा पूजा उनका प्रमुख अनुष्ठान है, जो सावता का दूसरा धर्म है। हल्बा जाति का खेती का लंबा इतिहास है। हल्बी अधिकांश किसान हैं।

माड़िया

यह जनजाति मुख्य रूप से बस्तर में रहती है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले माड़िया लोगों की सभ्यता विश्व सभ्यता से पूरी तरह अलग है। ज्यादातर अबूझमाड़ की पहाड़ियों में रहते हैं, इसलिए इन्हें अबूझमाड़िया भी कहा जाता है। माड़ियाओं का एक वर्ग गौर माड़िया कहलाता है क्योंकि वे जंगली भैंसों के सींगों से बनी टोपी पहनते हैं। दंडामी माड़िया एक प्रसिद्ध वर्ग है।

दक्षिण दंतेवाड़ा, कोंटा, बीजापुर और जगदलपुर इस वर्ग के प्रमुख स्थान हैं। विद्वान ग्रिसेन ने इस प्रजाति का व्यापक अध्ययन किया है और इसके बारे में काफी जानकारी भी दी है। इस पर भी उन्होंने काफी विस्तार से अध्ययन किया था।

मुड़िया

मुड़िया गोंड की एक उपजाति है। “मुड़” इसका नाम था। इनकी संख्या कोंडागांव और नारायणपुर जैसे क्षेत्रों में अधिक है, लेकिन इसकी अपनी अलग पहचान है। वे हल्की और गोंडी बोली में बोलते हैं। वे मध्यम कद के, सांवला रंग के और सुंदर चेहरे के होते हैं।

उनका घर दो कमरों का है और छोटा है। पुरुष मज़दूरी करते हैं, खेती करते हैं, लकड़ी काटते हैं, शिकार करते हैं और अन्य काम करते हैं। खेती करने के लिए ये लोग कुदाल का इस्तेमाल करते हैं। मुड़िया जाति बहुत कर्मठ है। उनकी महिलाएं सफाई करना पसंद करती हैं। वे ठाकुरों और महादेवों का सम्मान करते हैं।

भतरा

यह जनजाति बहुत पुरानी है और अधिकांश रायपुर जिले और बस्तर संभाग के दक्षिणी भागों में रहती है। वे तीन प्राथमिक उपजातियों (अमेनत, पित और संभत्रा) में विभाजित हैं। पित भत्रा को उच्च वर्ग का माना जाता है, जबकि संभत्रा को निम्न वर्ग का माना जाता है। तीनों वर्गों के लोग एक साथ भोजन नहीं करते जब तक वे शादी नहीं करते।

भतरा जनजाति शिकार देव या माटी देव की पूजा करती है। वह हर गांव के एक पेड़ पर रहती है। यह उड़िया जाति भतराई बोली बोलती है। इस जनसंख्या का मानना है कि वे चौदहवीं शताब्दी में राजा अन्नादेव के साथ बरंगल से बस्तर गए थे।

कमार

यह छत्तीसगढ़ में बहुत प्राचीन है। छत्तीसगढ़ राज्य के बिंद्रानवागढ़, फिंगेश्वर, मैनपुर और धमतरी राज्य के नवागढ़ और सिहावा इलाकों में कमर जनसंख्या अधिक है। रायपुर जिले में अधिकांश लोग कमार हैं। अब कमरे के एक कमरे के बजाय जंगल में गुफाओं में रहते हैं। उनके जानवर घर के बाहर रहते हैं।

कमारों का मानना है कि वे गोंडों से आते हैं। कमार विवाह भाई-बहन के बीच हो सकते हैं, लेकिन गोत्र के भीतर नहीं होते। इनमें जीवन साथी चुनने का भी हिस्सा है। विधवा पुनर्विवाह, पैठू विवाह, सहपालयन विवाह, बिहाव, सेवा विवाह ज़्यादातर कमार शादीशुदा हैं। उनके विवाह संस्कार बहुत ही मूल हैं। कमारों की जाति पितृवंशीय है। एक शादीशुदा लड़का अपने परिवार में वापस आ जाता है।

बैगा

यह द्रविड़ जनजाति छत्तीसगढ़ के पहाड़ी जिलों में रहती है, विशेष रूप से बिलासपुर, राजनांदगांव और सरगुजा जिलों में। मुख्य बैगा उपजातियों में बिंझवार, काढ़ ना, नाहर भैना, भरोतिया और नरोतिया शामिल हैं। छत्तीसगढ़ में बैगा जनजाति के लोगों की सबसे अधिक संख्या भैना बिलासपुर जिले में है।

बैगा आम तौर पर मध्यम कद का होता है। उन्हें सुगठित शरीर, सांवला रंग, बड़े होंठ और चपटी नाक है। यह जाति जंगलों में ऊँचे स्थानों पर घर बनाती है। उनके शब्दों में कोई समानता नहीं है।

निष्कर्ष:

संक्षेप में, छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियां गोंड, हल्बा, कमार, बैगा, मुरिया और मारिया हैं, जो राज्य की सांस्कृतिक एकता में महत्वपूर्ण हैं। छत्तीसगढ़ की विविधता में उनकी अलग-अलग आदतें, परंपराएँ और जीवन शैली का बड़ा योगदान है।

इन जनजातियों ने भारत की सांस्कृतिक विरासत में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, हालांकि वे कई चुनौतियों का सामना करते हुए भी अपनी पहचान बनाए रखने में सफल रहे हैं। इन जनजातियों को बल देने और उनकी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए, उनका निरंतर विकास और विकास सुनिश्चित करना चाहिए।

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