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भारतीय संविधान का निर्माण संपूर्ण जानकारी | Making of the Indian Constitution in hindi

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Making of the Indian Constitution in hindi

भारतीय संविधान का निर्माण | Indian Constitution in hindi

हेल्लो, कैसे हो आप आज हम भारतीय संविधान का निर्माण बारे में जानेंगे। हम भारतीय संविधान का निर्माण | Making of the Indian Constitution in hindi के बारे में। कैबिनेट मिशन योजना के आधार पर भारत की संविधान सभा ने जुलाई 1946 में अपना संविधान बनाया। 9 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा का पहला अधिवेशन हुआ था। 11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया था। वी. एन. राव को संविधान सभा का संवैधानिक सलाहकार बनाया गया।

प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे। 26 नवंबर, 1949 को भारतीय संविधान को संविधान सभा ने अंतिम रूप दे दिया। 26 नवंबर, 1949 को संविधान के 15 अनुच्छेद ही लागू हुए, लेकिन संविधान का बाकी हिस्सा 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। पूर्ण संविधान, जिसमें 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं, बनाने में दो वर्ष, 11 महीने और 18 दिन लगे।

भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ

प्रथम अनुसूची – इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों और संघीय क्षेत्रों का उल्लेख है।

द्वितीय अनुसूची – इसमें भारत के उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधानपरिषद् के सभापति और उपसभापति आदि के वेतन और पेन्शनों का विवरण है।

तृतीय अनुसूची – इसमें विभिन्न पदधारियों (राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, मन्त्री, संसद सदस्य, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों आदि) द्वारा पद ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है।

चतुर्थ अनुसूची – इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षोत्रों का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है। 

पाँचवीं अनुसूची – इसमें विभिन्न अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के बारें में उल्लेख है।

छठी अनुसूची – इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा ओर मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है।

सातवीं अनुसूची – इसमें संघ सूची (97 विषय) राज्य सूची (62 विषय) और समवर्ती सूची (52 विषय) के विषयों को उल्लेख किया गया है।

आठवीं अनुसूची – इसमें भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है – 

1. असमिया, 2. बांग्ला, 3. गुजराती, 4. हिन्दी, 5. कन्नड़, 6. कश्मीरी, 7. कोंकणी, 8. मलयालम, 9. मणिपुरी, 10. मराठी,

11. नेपाली, 12. उड़िया, 13. पंजाबी, 14 संस्कृत, 15. सिन्धी, 16. तमिल, 17. तेलगू, 18. उर्दू, 19. बोडो, 20. मैथिली, 21. सन्थाली, 22. डोगरी.

  • नवीं अनुसूची – इसके अन्तर्गत राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गाय है।
  • दसवीं अनुसूची – इसमें दल-बदल से सम्बन्धित प्रावधानों का उल्लेख है।
  • ग्यारहवीं अनुसूची – इस अनुसूची के आधार पर ‘पंचायती राज्यव्यवस्था’ को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।
  • बारहवीं अनुसूची – इस अनुसूची के आधार पर शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं का उल्लेख कर उन्हें संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।

भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोत

1935 का भारतीय शासन अधिनियम

  • ब्रिटिश संविधान: संसदीय व्यवस्था
  • अमरीका का संविधान: मौलिक अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय से सम्बधित व्यवस्थाएँ और उपराष्ट्रपति के सम्बंध में की गयी व्यवस्था
  • कनाडा का संविधान: संघात्मक व्यवस्था 
  • आस्ट्रेलिया का संविधान: संविधान की प्रस्तावना में निहित भावनाएँ समवर्ती सूची
  • आयरलैण्ड का संविधान: नीति निर्देशक सिद्धान्त
  • दक्षिण अफ्रीका का संविधान: संविधान की संशोधन पद्धति
  • जापान का संविधान: अनुच्छेद 21 की शब्दावली
  • जर्मनी का संविधान: आपात उपबन्ध

मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान के तृतीय भाग में मूल अधिकारों के सम्बन्ध में कुल 23 अनुच्छेद (अनुच्छेद 12 से 30 और 32 से 35) हैं। वर्तमान में भारतीय नागरिकों के छ : मूल अधिकार प्राप्त हैं –

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18)

2. स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)

3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 और 24)

4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)

5. संस्कृति और शिक्षा सम्बधी अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30)

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

सम्पत्ति का अधिकार सम्पत्ति का अधिकार अब मूल अधिकार नहीं है वरन केवल एक कानूनी अधिकार है।

मौलिक कर्त्तव्य

1950 में बनाया गया भारत का संविधान नागरिकों के मूल कर्तव्यों को नहीं बताता था। 1976 में 42वें संविधान संशोधन ने संविधान के चतुर्थ भाग (अनुच्छेद 51 क) में स्थान लिया। जिसमें दस मूल कर्तव्यों की सूची दी गई थी। 86वें संविधान संशोधन ने अभिभावकों को 6-14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अवसर देने का दायित्व बढ़ाकर अब नागरिकों के निम्नलिखित 11 कर्तव्यों को जोड़ा –

(i) संविधान का पालन तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान।

(ii) राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रेरक आदर्शों का पालन।

(iii) भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा।

(iv) देश की रक्षा और राष्ट्र सेवा।

(v) भारत के लोगों में समरसता और भ्रातृत्व की भावना का विकास।

(vi) समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा की रक्षा।

(vii) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन का विकास।

(viii) प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सभी प्राणियों के प्रति दया भाव।

(ix) सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा व हिंसा से दूर रहना।

(x) व्यक्तिगत तथा सामूहिक उत्कर्ष का प्रयास ।

(xi) माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6-14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना।

लोकसभा

संविधान के अनुच्छेद 81 में लोकसभा के गठन की चर्चा की गई है। लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता हैं। लोकसभा में अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं। इस समय लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या 545 है।

राज्यसभा

संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्यसभा का निर्माण बताया गया है। राज्यसभा के 238 सदस्यों को अनुपातिक पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा चुना जाता है। राज्यसभा में 250 से अधिक सदस्य हो सकते हैं। इसमें राष्ट्रपति के लिए बारह सदस्य चुने जाते हैं। भारत में वर्तमान में 28 राज्य हैं और 8 केन्द्रशासित प्रदेश हैं।

राष्ट्रपति

भारत का राष्ट्रपति भारत की संघीय कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक होता है।

योग्यताएँ – वह भारत का नागरिक हो, वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो, वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।

निर्वाचन – राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति से होता है।

महाभियोग प्रक्रिया – राष्ट्रपति को संविधान के उल्लंघन के आधार पर केवल महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है (अनुच्छेद 61)।

उपराष्ट्रपति

निर्वाचन कार्यकाल – उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर किया जाता है।

योग्यताएँ – वह भारत का नागरिक हो, उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष हो, वह राज्य सभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता रखता हो।

कार्य – उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति पद के समस्त दायित्वों का निर्वहन करता है।

प्रधानमंत्री और मन्त्रिपरिषद्

प्रधानमंत्री – संविधान के अनुच्छेद 75 (I) में कहा गया है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा।

मंत्रिपरिषद् – राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श पर अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।

राज्य सरकार

भारत में संघीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। इस प्रणाली में राज्यों का प्रशासन राज्य सरकारों द्वारा चलाया जाता है।

राज्यपाल

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से 160 तक में राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियाँ तथा कार्यों का वर्णन किया गया है।

नियुक्ति (अनुच्छेद 155) – राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रधान होता है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है और वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर रहता है।

योग्यताएँ (अनुच्छेद 157) – वह भारत का नागरिक हो, उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष हो, वह किसी लाभ के पद पर न हो।

विधानसभा

रचना एवं कार्यकाल – संविधान के अनुच्छेद 170 के अनुसार राज्य विधानसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 500 और न्यूनतम सदस्य संख्या 60 है; विधानसभा के सदस्यों को पांच वर्षों के लिए जनता द्वारा वयस्क मताधिकार की प्रणाली से चुना जाता है।

मुख्यमंत्री एवं राज्य मंत्रिपरिषद्

मुख्यमंत्री की नियुक्ति – मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है।

राज्य मंत्रिपरिषद् की रचना अथवा गठन – राज्य का राज्यपाल मुख्यमंत्री की सिफारिश पर राज्य मंत्रिपरिषद् के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है।

राज्य के नीति-निदेशक तत्व

संविधान के अनुच्छेद 36-51 तक में राज्य की नीति के निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष के रूप में, भारत का ऐतिहासिक संविधान ने देश को स्वतंत्र, लोकतांत्रिक और गणतंत्रिक बनाया। यह संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता देता है, साथ ही सरकार की शक्ति और कार्यवाही भी बताता है।

भारतीय सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों के निरंतर परिवर्तनों ने संविधान को अपडेट किया है। यह संविधान भारत की लोकतांत्रिक मूल्यों, एकता और अखंडता को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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