बाल विकास का सिद्धांत क्या है?
हेल्लो, कैसे हो आप? आज हम जानेगे विशिष्ट बालक के बारे में। हम बाल विकास का सिद्धांत क्या है? | What is the theory of child development in Hindi के बारे में जानेंगे। जन्म से मृत्यु तक हर जीव बदलाव से गुजरता है। मानव शिशु अवस्था से लेकर प्रौढ़, वृद्ध व मरने तक कई अलग-अलग अवस्थाओं से गुजरता है। यह परिवर्तन कई आयनों में होता है, प्रत्येक में अपनी अलग विशेषता है।
परिभाषा स्पाइकर के अनुसार – मानव जीवन में होने वाले परिवर्तन विकास का अर्थ हैं। ये परिवर्तन व्यक्ति की बढ़ती हुई आयु से संबंधित हैं।
बी. एफ. स्किनर के अनुसार – विकास प्राणी और उसके परिवेश की अन्तः क्रिया का प्रतिफल है।
एण्डरसन के अनुसार – विकास सिर्फ इंच दर इंच या योग्यताओं में होने वाले आनुपातिक अंतर या शारीरिक आकार में बदलाव नहीं है; यह कई संरचनाओं और क्रियाओं के एकीकरण का एक जटिल प्रक्रिया है।
वृद्धि और विकास में अन्तर –
आधार | वृद्धि | विकास |
1. संबंध | वृद्धि शारीरिक संरचना पर आकार व बनावट के बढ़ने से संबंध रखती है। | विकास शारीरिक मानसिक, सामाजिक, आर्थिक व नैतिक से संबंधित होती है। |
2. क्षेत्र | संकल्पना सीमित क्षेत्र में होती है। | संकल्पना विस्तृत क्षेत्र में होती है। |
3. मापन | यह मात्रात्मक होती है। | यह मात्रात्मक व गुणात्मक होती है। |
4. रूप | यह स्थूल रूप में दिखाई देती है। | यह दृश्य और अदृश्य दोनों होती है। |
5. परिवर्तन | इसमें होने वाले परिवर्तन संरचनात्मक होते हैं। | इसमें होने वाले परिवर्तन व्यवहार से दृष्टिगोचर होते हैं। |
6. दिशा | यह धनात्मक होती है। | यह धनात्मक व ऋणात्मक दोनों होती है। |
7. प्रभाव | वृद्धि में वंशानुक्रम का प्रभाव होता है। | इसमें वंशानुक्रम व वातावरण दोनों का प्रभाव होता है। |
8. सीमा | यह 20-25 वर्ष तक होती है। | यह जीवन पर्यन्त चलती रहती है। |
9. क्रम | निश्चित क्रम में होती है। | यह अनिश्चित क्रम में होती है। |
विकास के विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादित हैं –
1. व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत
2. निरन्तर विकास का सिद्धांत
3. विकासक्रम का सिद्धांत
4. विकास की दिशा का सिद्धांत
5. परस्पर संबंध का सिद्धांत
6. सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रिया का सिद्धांत
7. समान प्रतिमान का सिद्धांत
8. वंशानुक्रम व वातावरण की अन्तः क्रिया का सिद्धांत
9. लचीलेपन का सिद्धांत
10. जातिगत समानता का सिद्धांत
11. विकास और विनाश का सिद्धांत
मानवीय विकास की विशेषताएँ –
1. विकास क्रमिक होता है।
2. विकास के क्रम में बालक एक वर्ष में पैर की मांसपेशियों पर नियंत्रण कर खड़ा होने लगता है।
3. दूसरे क्रम में 2 वर्ष के अंत तक चलना व दौड़ना प्रारंभ कर देता है।
4. 3 वर्ष में भाषा का विकास और विचारों की अभिवृद्धि होती है।
5. विकास एक निरन्तर चलने वाली क्रिया है ।
6. विकास की क्रिया सामान्य से विशिष्ट की ओर चलती है।
7. विकास की प्रक्रिया हर बालक में अलग-अलग होती है।
8. विकास में हर अवस्था के लक्षण व विशेषता अलग होती है।
9. विकास की गति प्रत्येक बालक की अलग होती है।
10. जाति, संस्कृति, सभ्यता, सामाजिक संरचना, देश व भौगोलिक स्थिति का बालक के विकास में प्रभाव पड़ता है।
बाल विकास से तात्पर्य क्या है ?
बाल विकास का अर्थ है शिशु के गर्भ में आने से लेकर पूर्ण प्रौढ़ता तक की अवधि। जीव पिता और माता के जीन्स (गुणसूत्र) मिलकर बनता है। उसके अंग माता के गर्भ में ही विकसित होते हैं और जन्म के बाद भी अनवरत रहते हैं।
बालक इस विकास क्रम में कई पड़ाव पार करता है। इन परिस्थितियों में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक विकास भी होता है।
ड्रेवर –
विकास एक प्राणी में होने वाला निरंतर प्रगतिशील परिवर्तन है जो किसी उद्देश्य की ओर निर्देशित होता है। उदाहरण: किसी भी जाति में भ्रूण अवस्था से प्रौढ़ अवस्था तक निरंतर परिवर्तन होता है।
मुनरो –
परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था जिसमें बालक भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास कहा जाता है।
हरलॉक –
अभिवृद्धि तक ही नहीं, विकास की सीमा प्रौढ़ावस्था के लक्ष्य की ओर बदलावों का प्रगतिशील क्रम है। विकास एक व्यक्ति में कई नवीन गुण और क्षमता पैदा करता है।
बाल विकास महत्व
विकास व्यक्तित्व में नए गुण और क्षमता पैदा करता है। हरलॉक, व्यक्ति तथा समाज के कल्याण के क्षेत्र में रुचि रखने वाले मनोवैज्ञानिकों, शिक्षकों, अभिभावकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बालकों के विकास के अध्ययन को अधिक महत्व देने लगा है।
यही कारण है कि बालक के छः वर्ष महत्वपूर्ण होते हैं, आदि लोकोक्तियों ने बाल विकास के अध्ययन को विशेष महत्व दिया है। क्रो और क्रो में अलग-अलग भिन्नताएँ हैं। बाल विकास का महत्व बालक के विकास के कई पहलुओं को बताता है। सामाजिक और पारिवारिक परिवेश का ज्ञान देता है। परिवार व समाज एक-दूसरे के पूरक हैं।
जो कि बालक के विकास में सहयोग प्रदान करता है। अत: बाल-विकास का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है –
1. बाल के पोषक का ज्ञान
2. वैधानिक संबंधों का ज्ञान
3. बालक के सामान्य एवं असामान्य व्यवहार का ज्ञान
4. विकास की अवस्थाओं तथा सामाजिकरण का ज्ञान
5. वैयक्तिक भेदों का ज्ञान
6. बालक के स्वास्थ्य का ज्ञान
7. खेलों के महत्व का ज्ञान
बाल विकास की समस्याएँ –
बालक के विकास में कई समस्याएं होती हैं। प्रत्येक बच्चे की अलग-अलग समस्याएं हैं और वे अलग-अलग हैं। कई बार एक ही प्रकार की समस्या का निदान अलग-अलग होता है, क्योंकि बच्चे में विशिष्ट भिन्नताएँ होती हैं।
बालक के विकास की मुख्य समस्याएँ निम्नवत होती हैं –
1. बुद्धिगत समस्याएँ
2. लिंगगत समस्याएँ
3. माता-पिता या संरक्षकों से उत्पन्न समस्याएँ
4. निकट वातावरण से उत्पन्न समस्याएँ
5. धन के अभाव से उत्पन्न समस्याएँ
6. शिक्षा के अभाव से उत्पन्न समस्याएँ
7. शरीर की आकृति से उत्पन्न समस्याएँ
8. धार्मिक व नैतिक मूल्यों के अभाव से उत्पन्न समस्याएँ ।
निष्कर्ष:
निष्कर्ष के रूप में, बाल विकास के सिद्धांत पर बहुत से विचार हैं। जो गर्भावस्था से किशोरावस्था तक बच्चे कैसे विकसित होते हैं। यह जटिल प्रक्रिया है जो बच्चों के सामाजिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक और सामाजिक विकास को आकार देती है; गतिशील प्रक्रियाओं को समझने के लिए जैविक, मनोवैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारक भी महत्वपूर्ण हैं।
बच्चों के विकास में यात्रा का महत्व समझने में यह सिद्धांत उपयोगी है। इसमें पालन पोषण शिक्षा हस्तक्षेप और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक योजना है।
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