छत्तीसगढ़ का भूगोल | Geography of Chhattisgarh in Hindi
छत्तीसगढ़ का भूगोल
हेल्लो, कैसे हो आप आज हम जानेगे छत्तीसगढ़ के भूगोल के बारे में, छत्तीसगढ़ का भूगोल | Geography of Chhattisgarh in Hindi के बारे में जानेंगे। छत्तीसगढ़ मध्य भारत का एक राज्य है। यह कहता है कि यह जगह बहुत अलग है, दूसरों से बहुत अलग है। छत्तीसगढ़ में बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन हैं। विकास में छत्तीसगढ़ का भूगोल महत्वपूर्ण था। झरनों से लेकर घने जंगलों और उपजाऊ जमीन से लेकर खनिज समृद्ध पठारो तक बहुत सारे संसाधन हैं। छत्तीसगढ़ का भूगोल प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है।
1) बघेलखंड का पठार –
यह छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र में है, जहां कोरिया, कोरबा और सरगुजा जैसे महत्वपूर्ण जिले हैं। यह समान ऊंचाई वाला पत्थर क्षेत्र नहीं है; यह एक असमतल क्षेत्र है, जिसमें रविंद्र बेसिन, सरगुजा बेसिन और देवगढ़ की पहाड़ियां शामिल हैं। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदियों में से एक है।
यहां प्रायः लेटराइट और लाल पीली मिट्टी मिलती है। ज्वार, मक्का और धन इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं। इस भूक्षेत्र के मध्य से कर्क रेखा गुजरती है। गोंडवाना शैल समूह कोयला बनाता है। पर्यटन स्थलों में गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और कई जलप्रपात शामिल हैं।
2) छत्तीसगढ़ का मैदान –
इस क्षेत्र का निर्माण मुख्यतः कडप्पा चट्टानों के अपरदन से हुआ है। इस क्षेत्र में प्रमुख जिले बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग हैं। इस क्षेत्र का आकार पंखाकार है। छत्तीसगढ़ का क्षेत्र पूर्व की ओर है। इसे उत्तर और दक्षिण में विभाजित किया जा सकता है। बिलासपुर, जांजगीर, रायगढ़ जिले उत्तर में हैं, जबकि रायपुर, दुर्ग और बालोद जिले दक्षिण में हैं।
महानदी किसी विकसित स्थान में है, खासकर धान की फसल के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यह अपवाह तंत्र का हिस्सा है डोलामाईट (चूना पत्थर) खनिज इस क्षेत्र में उपलब्ध है। प्रदेश का सबसे विकसित औद्योगिक क्षेत्र है, जहां लोहा, इस्पात, सीमेंट और अल्युमिनियम जैसे महत्वपूर्ण उद्योग हैं।
3) दण्डकारण्य का पठार –
छत्तीसगढ़ के मैदान के दक्षिण में दण्डकारण्य का पत्थर स्थित है। इस क्षेत्र में कांकेर, बस्तर और दंतेवाड़ा जैसे बड़े जिले हैं। बस्तर के पत्थर को इंद्रावती नदी घाटी ने दो भागों में बांट दिया है। उत्तर पठारी क्षेत्र में बस्तर, कांकेर और कोंडागांव शामिल हैं। जबकि बस्तर का कुछ हिस्सा बीजापुर, दंतेवाड़ा आदि क्षेत्र से मिलकर बना हुआ दक्षिणी हिस्सा दंतेवाड़ा के पठार के नाम से जाना जाता है।
इंद्रावती नदी का मुख्य प्रवाह क्षेत्र दण्डकारण्य का पठार है। कृषि अधिक विकसित स्थिति में नहीं है, लेकिन क्षेत्र लौह अयस्क की भंडारण के लिए जाना जाता है. मुख्यतः पारंपरिक फसलों और मोटे अनाज का उत्पादन होता है। यह क्षेत्र अपने कई पर्यटन स्थलों और जनजाति बतूलता के लिए भी प्रसिद्ध है।
4) जयपुर सामरी पाट प्रदेश –
सामरी पाट प्रदेश तीव्र ढाल वाले पठारी क्षेत्रों को कहते हैं। यह जयपुर से सरगुजा के पूर्वी भाग तक फैला हुआ है। यह राज्य का सबसे ठंडा क्षेत्र है। मांड और ईब दो प्रमुख नदी हैं। बॉक्साइट एक आम खनिज है। लाल दोमट और लाल पीली मिट्टी मिलती है।
इस क्षेत्र में राज्य की सबसे ऊंची चोटी गौरलटा है। यहाँ अधिक वर्षा होती है और जलवायु शुष्क है। इस क्षेत्र में कृषि क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम विकास हुआ है। यद्यपि पिछले कुछ वर्षों से यहां वाणिज्यिक निर्णय जैसे चाय उत्पादन बढ़ाया गया है इस क्षेत्र में मैनपाट सहित कई प्राकृतिक पर्यटन स्थल हैं।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख नदी परियोजनाएं –
1) मिनीमाता हसदेव बांगो परियोजना (1967) –
यह एक बहुउद्देशीय नदी घाटी प्रोजेक्ट है। बांध कोरबा जिले के बागो ग्राम के पास महानदी की प्रमुख सहायक नदी हसदो पर बनाया जाता है। यह इस क्षेत्र का सबसे ऊंचा बांध है। इस परियोजना से कोरबा रायगढ़ क्षेत्र में सिंचाई सुविधा, 120 मेगावाट विद्युत उत्पादन और कोरबा औद्योगिक क्षेत्र सहित कोरबा नगर निगम को जल मिलता है।
2) मनियारी परियोजना (1924-30)
गुड़िया गांव, मुंगेली जिले की लोरमी तहसील में शिवनाथ नदी की प्रमुख सहायक मनियारी नदी पर बनाया गया है। लाभार्थी क्षेत्र में मुंगेली और लोरमी तहसीलों के कई गाँव शामिल हैं इस कार्यक्रम का नाम राजीव गांधी परियोजना है।
3) महानदी परियोजना समूह –
राज्य की सबसे पुरानी सिंचाई योजना इस समूह में रुद्री बैराज, मुरूमसील्ली जलाशय, दुधवा जलाशय और गंगरेल बांध या रविशंकर जलाशय हैं। रायपुर नगर निगम, जल आपूर्ति जल विद्युत उत्पादन इकाई, इससे रायपुर संभाग के कई क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं का लाभ उठाता है।
4) अरपा भैंसाझार व्यपवर्तन परियोजना –
यह बिलासपुर जिले के कोठा तहसील में भैंस झनामा नामक स्थान पर है। इससे कोटा और बिल्हा के कई गाँवों को सिंचाई सुविधा मिलेगी। इसका काम कई वर्षों से लंबित था, लेकिन अब पूरा हो चुका है।
5) घोंघा परियोजना –
यह परियोजना बिलासपुर अचानकमार रोड पर घोंघा नामक नाले पर स्थापित है। इससे कोटा और तखतपुर क्षेत्र शुदा सिंचाई प्राप्त करते हैं। इसमें कई नदी परियोजनाएं भी शामिल हैं, जो अभी भी निर्माणाधीन हैं या प्रस्तावित हैं।
सिंचाई
राज्य बनने के बाद, शासन ने जल संसाधनों की वृद्धि और सिंचाई क्षमता बढ़ाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। 2018 तक प्रदेश के कुल बोया गया क्षेत्र के 37% में सिंचाई क्षमता बनाई गई थी। 52% सिंचाई बांधों और नहरों से होती है। राज्य सरकार ने 2028 तक राज्य की पूरी सींचाई क्षमता बनाने का लक्ष्य रखा है।
प्रदेश के 52% सिंचाई नहरों और जलाशयों से होती है। इसके लिए आठ बड़े और 38 मध्यम परियोजनाएं बनाई गई हैं, और चार बड़े परियोजनाओं का निर्माण अभी चल रहा है। लघु परियोजनाओं और एनीकर भी बनाए गए हैं।
कृषि
छत्तीसगढ़ एक कृषि राज्य है। राज्य की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में लगभग 80% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़े क्रियो में काम करती है। प्रदेश की कुल भूमि के लगभग 61.6% खेती की जाती है।
कृषि भूमि के उपयोग, उत्पादन और जलवायु की दृष्टि से राज्य को तीन प्रमुख जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: छत्तीसगढ़ पहाड़ी क्षेत्र (५०.५२%), उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र (२०.८६%) और बस्तर पहाड़ी क्षेत्र (२८.६२%)।
कृषि विकास योजनाएं
1) सूरजधारा योजना –
बीज अदला-बदली की योजना इसके अंतर्गत कषक को अलाभकारी फसलों के बीच के बदले लाभकारी फसलों के उन्नत बीज दिया जाता है।
2) किसान समृद्धि (नलकूप) योजना –
प्रदेश के कृषकों को निजी नलकूप खनन कर सुनिश्चित सिंचाई सुविधा देने के लिए, सामान्य वर्ग के कृषकों को 25000 रुपये, अन्य पिछड़ा वर्ग के कृषकों को 35000 रुपये और अजा और अजा वर्ग के कृषकों को 40000 रुपये अधिकतम अनुदान दिया गया है।
3) जैविक खेती योजना –
प्रदेश में चार जिलों (गरियाबंद, सुकमा, बीजापुर एवं दंतेवाड़ा) को पूरी तरह से जैविक जिले बनाने की योजना है, जबकि शेष 23 जिलों में प्रत्येक में एक विकासखंड को पूरी तरह से जैविक विकासखंड बनाने की योजना है।
4) सूक्ष्म सिंचाई योजना –
2012 से 2013 तक, राज्य सरकार ने ड्रिप सिंचाई पर कृषकों को अनुदान देने की योजना सभी जिलों में लागू की है। योजना लघु सीमांत कृषकों को 70% और अन्य कृषकों को 50% अनुदान देती है।
निष्कर्ष:
वास्तव में, छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता और आर्थिक क्षमता उसके विभिन्न हिस्सों से दिखाई देती हैं। राज्य की विशिष्ट जमीन, जिसमें हरे-भरे मैदान, खनिज-समृद्ध पठार और ऊंची पहाड़ियाँ और जंगल हैं, ने इसके लोगों के जीवन को बदल दिया है और राज्य की वृद्धि को प्रभावित किया है। छत्तीसगढ़, अपने प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक विरासत और राज्य की पहचान और भविष्य के लक्ष्यों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण है।
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