History of Chattisgarh in Hindi | छत्तीसगढ़ का इतिहास सपूर्ण जानकारी

History of Chattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ का इतिहास | History of Chattisgarh in Hindi

नमस्ते, आप कैसे हैं? हमारे CGJobUpdates.com में आपका स्वागत है। हम आज छत्तीसगढ़ का इतिहास | History of Chattisgarh in Hindi के बारे में जानेंगे। छत्तीसगढ़ राज्य, जो मध्य प्रदेश के दक्षिण-पूर्व में स्थित है, पहले कौशल, दक्षिण-कौशल, महाकौशल, महाकांतार और दंडकरंडा सहित विभिन्न नामों से जाना जाता था। महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में इसका उल्लेख है। भारत का सबसे पहला ज्ञात लिखित विवरण, वाल्मिकी कृत रामायण, उत्तरी और दक्षिणी कोसल का संदर्भ देता है।

उस समय दक्षिण कोसल अब छत्तीसगढ़ है। समय-समय पर शैलचित्रों और उत्खननों से क्षेत्र के प्रागैतिहासिक अतीत के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है। कुछ शिक्षाविदों का दावा है कि रायगढ़ जिले की काबरा पहाड़ी और सिंघनपुर गुफाओं में शैल कला बीस से पचास हजार वर्ष पुरानी है।

छत्तीसगढ़ का प्राचीन स्वरूप

प्राचीन छत्तीसगढ़ का स्वरूप आज की तुलना में निश्चय ही काफी भिन्न था। तब इसके अंतर्गत आज के रायपुर और बिलासपुर संभागों के अलावा जबलपुर संभाग के बालाघाट और शहडोल तथा मंडला जिले, तथा उड़ीसा प्रांत के सम्बलपुर, सुंदरगढ़, कालाहांडी और बलांगीर जिले भी सम्मिलित थे।

  • छत्तीसगढ़ पूर्व में हैहयवंशी राजपूत साम्राज्य के द्वारा प्रशासित था जिसमें छत्तीसगढ़ थे, जिनके नाम से इस प्रदेश का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा। उस समय रायपुर, दुर्ग तथा बिलासपुर के अधिकतम भाग ही राज्य के अन्तर्गत आते थे।
  • “छत्तीसगढ़” नामकरण को लेकर इतिहासकारों में परस्पर मतभेद हैं। पंडित लोचन प्रसाद पाण्डेय के अनुसार मध्य युग में किसी राजा की सैन्यशक्ति और महत्ता बताने के उद्देश्य से उसके राज्य का नाम गढ़ों (किलों) से लिया जाता था।
  • पहले यह अंचल “छत्तीसगढ़ रतनपुर” कहलाता था, कालान्तर में रतनपुर शब्द का लोप हो गया और केवल छत्तीसगढ़ शब्द प्रचलन में रहा ।
  • इस अंचल की घुमन्तु देवार जाति में प्रचलित लोक-गीतों से भी पता चलता है कि रतनपुर और रायपुर राज्य के अन्तर्गत अठारह – अठारह गढ़ थे।

महाकौशल के राजा महेन्द्र

लगभग सौलह सौ वर्ष पहले महाकौशल के राजा महेन्द्र से भारतीय नेपोलियन समुद्रगुप्त को युद्ध करना पड़ा और महाकांतार के राजा व्याघ्रदेव (बाधराय) से भी लोहा लेना पड़ा था। उस समय “अष्टादश अटवीं राज्य’ अर्थात अठारह जंगली राज या जंगली गढ़ का भी उल्लेख मिलता है। उस समय का अठारह गढ़ तो प्रधानतः मध्य भारत में रहा होगा, परन्तु उसके बाद का “अठारह गढ़” उड़ीसा में भी दिखाई पड़ने लगा। उनके दूने होने की लालसा से जान पड़ता है, यह प्रान्त छत्तीसगढ़ कहलाने लगा।

छत्तीसगढ़ का पुरातत्व एवं इतिहास

छत्तीसगढ़ के पुरातत्व के प्रमुख तथ्य निम्न हैं –

  • छत्तीसगढ़ में स्थापत्य कला का प्रारम्भ 5 वीं शताब्दी के शरभपुरीय शासकों के शासनकाल से प्रारम्भ होता है। 
  • छत्तीसगढ़ का सबसे प्राचीन मन्दिर बिलासपुर से 30 कि.मी. दूर मनियारी नदी के तट पर तालागाँव में देवरानी व जेठानी का मन्दिर है। 
  • छठी से नवीं शताब्दी के बीच ईंटों के मन्दिर की श्रृंखला है। 
  • पाषाण निर्मित मन्दिरों का प्रचलन कलचुरियों के शासन काल में हुआ। 
  • कवर्धा में नागवंशियों द्वारा निर्मित भोरमदेव का मन्दिर।
  • चित्रकोट के नागवंशियों द्वारा निर्मित – बारसूर का शिवमन्दिर, मामाभाँजा मन्दिर, गणेश मन्दिर।
  • दन्तेवाड़ा में – दन्तेश्वरी मन्दिर, नारायणपाल का मन्दिर, भैरमगढ़ का मन्दिर।
  • सरगुजा – डीपाडीह, सतमहल, महेशपुर।

छत्तीसगढ़ के इतिहास के प्रमुख तथ्य

ईसा से 600 साल से पूर्व क्रमबद्ध भारत के प्रामाणिक इतिहास में उल्लेखित 16 महाजन पदों में एक जनपद कोसल अर्थात् छत्तीसगढ़ था। भगवान बुद्ध के छत्तीसगढ़ आने के भी प्रमाण उपलब्ध हैं।

दुनिया को जानने के लिये विश्व यात्रा पर निकले प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के भी सिरपुर आने के प्रमाण हैं। सरगुजा जिले से प्राप्त मौर्यकालीन अभिलेख में देवदासी सुतनुका और देवदत्त के प्रेम का उल्लेख है।

छत्तीसगढ़ में राजवंशों के प्रमाण

इतिहास के दस्तावेजों के अनुसार छत्तीसगढ़ के अलग-अलग क्षेत्रों में कई स्थानीय राजवंशों के शासन के प्रमाण मिलते हैं। यहाँ राज करने वाले प्रमुख राजवंशों में वाकाटकों की एक शाखा के साथ नल, राजर्षितुल्य, शरभपुरी, पांडु, बाण और सोमवंश प्रमुख हैं।

चौथी सदी से इन वंशों के शासन के प्रमाण मिलते हैं। लगभग 600 वर्षों तक इन वंशों का राज छत्तीसगढ़ के किसी न किसी क्षेत्र में चलता रहा ।

छत्तीसगढ़ के इतिहास में कलचुरी राजवंश

छत्तीसगढ़ के इतिहास में कलचुरी राजवंश का महत्वपूर्ण स्थान है। इस वंश के राजा अपने को चंद्रवंशी तथा सहस्रार्जुन की संतान मानते थे। प्राचीन इतिहास के अनुसार छत्तीसगढ़ में कलचुरि साम्राज्य 1000 ईस्वी के आस-पास स्थापित हुआ, जब राजा कलिंगराज ने यहाँ का शासन संभालने के लिये तुम्माण में अपनी राजधानी बनाई । 

कलिंगराज के पौत्र रतनदेव प्रथम ने शासन संभालने के बाद रतनपुर में राजधानी स्थापित की । इस राजवंश के 1525 ईस्वी तक बने रहने के प्रमाण मिलते हैं। इसी राजवंश की एक अन्य शाखा द्वारा छत्तीसगढ़ में सन् 1750 तक राज करने के भी प्रमाण हैं।

छत्तीसगढ़ में मुगलकाल

मुगलकाल में छत्तीसगढ़ पर साय वंश के शासन का इतिहास भी मिलता है। कल्याण साय नामक राजा ने सन् 1536 से 1573 तक यहाँ शासन किया। उसकी राजधानी रतनपुर थी, वह अकबर और जहाँगीर के समकालीन था। कल्याण साथ के बाद इस वंश ने सन् 1750 तक राज किया। कुछ इतिहासकार साथ वंश को रतनपुर शाखा के कल्चुरी मानते हैं।

कल्चुरी राजवंश के पराभव के साथ ही सन् 1750 में छत्तीसगढ़ पर मराठा भोंसलों का राज्य कायम हुआ। नागपुर के राजा के प्रतिनिधि के रूप में बिम्बाजी ने सन् 1758 में राज्य की व्यवस्था संभाली।

बिम्बाजी के बाद मराठों का कोई उल्लेखनीय राजा एवं प्रतिनिधि छत्तीसगढ़ में नहीं रहा। 27 नवम्बर सन् 1817 में नागपुर में अंग्रेजों के साथ हुए युद्ध में मराठों की पराजय हुई और यह क्षेत्र अंग्रेजों के आधिपत्य में आ गया। सन् 1830 से सन् 1854 के बीच नागपुर और छत्तीसगढ़ का शासन एक बार फिर मराठों के हाथ में आया, परन्तु अंत में ब्रिटिश सरकार ने मराठों को हराकर इसे अपने हिस्से का राज्य बना लिया ।

छत्तीसगढ़ में शाहिद वीर नारायण सिंह 

अंग्रेजों के शासन काल में अंग्रेज हुकुमत के खिलाफ विद्रोह के बीज छत्तीसगढ़ में भी प्रस्फुटित हुए। माना जाता है कि वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ के पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। अंग्रेजों के शासनकाल में छत्तीसगढ़ सेन्ट्रल प्रोविन्स एवं बरार राज्य का हिस्सा था। देश के आजाद होने पर राज्य पुनर्गठन होने पर यह मध्य प्रदेश का हिस्सा बना। 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ भारत के 26 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।

छत्तीसगढ़ की पुरातात्विक सम्पदा अत्यन्त समृद्ध रही है । छत्तीसगढ़ में मन्दिर प्रमुख स्थापत्य कला के रूप में परिलक्षित होते हैं।

निष्कर्ष:

स्वतंत्रता के बाद, छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश में शामिल किया गया; हालाँकि, एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, राज्य को 2000 में स्वतंत्रता दे दी गई। छत्तीसगढ़ का इतिहास लुभावने प्राकृतिक दृश्यों, एक व्यापक सांस्कृतिक विरासत और बहादुर आदिवासी रीति-रिवाजों से भरा हुआ है।

यह क्षेत्र वन्य जीवन, लोक कला और धान के खेतों का खजाना है। भविष्य में छत्तीसगढ़ आधुनिक विकास की ओर अग्रसर होते हुए अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करेगा। अपने गौरवशाली अतीत और आशाजनक भविष्य के साथ यह राज्य भारत के गौरवशाली अतीत में सदैव अद्वितीय स्थान रखेगा।

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