छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आंदोलन | National Movement in Chhattisgarh in Hindi
हेल्लो, कैसे हो आप आज हम जानेगे छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आंदोलन के बारे में, हम आज छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आंदोलन | National Movement in Chhattisgarh in Hindi के बारे में जानेंगे। पं. सुन्दरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ में सामाजिक एवं राष्ट्रीय जागरण की शुरुआत की। सन्मित्र मंडल को सुन्दरलाल शर्मा ने 1906 में स्थापित किया था, जिसका उद्देश्य सामाजिक सुधारों के बारे में जनता को जागरूक करना था।
सन् 1891 में नागपुर में हुए एक अधिवेशन ने छत्तीसगढ़ के निवासियों को कांग्रेस से जोड़ा। CM ठक्कर ने रायपुर में कांग्रेस की शाखा बनाई। इसके बाद छत्तीसगढ़ में देशभक्ति का भाव लगातार फैलने लगा।
इसके कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु निम्नलिखित हैं –
- माधवराव सप्रे ने छत्तीसगढ़ में वैचारिक जागृति लाने के लिए छत्तीसगढ़-मित्र का प्रकाशन शुरू किया।
- माधवराव सप्रे ने रायपुर में हिन्द केसरी नामक हिन्दी पत्रिका का शुभारंभ किया, लेकिन वे गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें शासन से माफी माँगनी पड़ी।
- सन् 1909 में ठाकुर साहब ने सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की। माधवराव सप्रे, लक्ष्मण राव और मूलचंद बागड़ी ने 1916 में छत्तीसगढ़ में होमरूल लीग की स्थापना और विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- रविशंकर शुक्ल, वामनराव लाखे, घनश्याम सिंह गुप्त, मनमोहन सिंह गुप्त और कुंजबिहारी अग्निहोत्री ने रायपुर में प्रांतीय सभा का गठन किया।
बिलासपुर में राष्ट्रीय जागरण का प्रसारण
डॉ. राघवेन्द्र राव, कुंजबिहारी अग्निहोत्री और बैरिस्टर छेदीलाल सिंह ने बिलासपुर में राष्ट्रीय जागरण का प्रसारण किया। बिलासपुर में राष्ट्रीय जागरण काफी प्रभावी था।
राजनांदगाँव में ठाकुर प्यारेलाल सिंह
राजनांदगाँव में ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने शिवलाल मास्टर और शंकर खरे के साथ मिलकर स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की, जिसे उनके अन्य साथी गज्जूलाल शर्मा, छबिलाल चौबे सहित कई लोगों ने मजबूत किया। BNC मिल के मजदूरों ने अप्रैल 1920 में ठा. प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में 36 दिनों तक राजनांदगाँव में ऐतिहासिक हड़ताल की, जो अंततः मजदूरों के हित में समाप्त हुई।
- राजनांदगाँव रियासत के अधिकारियों ने ठाकुर प्यारेलाल को राजनांदगाँव सीमा से निष्कासित करने का आदेश दिया, लेकिन राज्यपाल के हस्तक्षेप से निष्कासन समाप्त हो गया।
- किसानों द्वारा नहर जल कर न देने के मुद्दे पर सुंदरलाल शर्मा, नारायणराव मेघावाले और छोटेलाल श्रीवास्तव ने कण्डेल आंदोलन की अगुवाई की।
- यही कारण था कि 20 दिसंबर, 1920 ई. को महात्मा गाँधी का आगमन धमतरी और कुरुद में अपूर्व राजनीतिक उत्साह लाया और किसानों पर लगाया गया कर माफ किया गया।
छत्तीसगढ़ में असहयोग आंदोलन
छत्तीसगढ़ में असहयोग आंदोलन के साथ ही कंडेल सत्याग्रह भी शुरू हुआ। 20 दिसंबर 1920 को महात्मा गाँधी ने गाँधी चौक में एक भाषण दिया। असहयोग आंदोलन के दौरान ठाकुर प्यारेलाल, ई. राघवेन्द्र राव और डी. के. मेहता ने वकालत छोड़ दी।
- वामनराव लाखे ने रायसाहब पद छोड़ दिया। राष्ट्रीय विद्यालयों का गठन होने लगा है। धमतरी में छोटेलाल श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय स्कूल खोला।
- राष्ट्रीय आंदोलन में ठाकुर प्यारेलाल, ई. राघवेन्द्र राव, ठाकुर छेदीलाल, वामनराव खानखोज, पं. रामनारायण तिवारी, पं. रविशंकर शुक्ल और वामनराव लाखे ने वकालत छोड़ दी।
- कुल 8 लोगों ने अपनी उपाधि छोड़ दी, जिसमें से आधे छत्तीसगढ़ से थे।
कुंजबिहारी लाल अग्निहोत्री ने संसद की सदस्यता व बैरिस्टर थैकर ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
सत्याग्रह आश्रम सुंदरलाल शर्मा ने बनाया था। राष्ट्रीय पंचायतों का गठन मार्च 1921 में रायपुर में हुआ था, जिसके मंत्री सेठ जयकरण डागा थे।
अगस्त 1921 ई. को विदेशी कपड़े की भारी होली हुई। 1921 में डॉ. राजेन्द्रप्रसाद और राजगोपालाचारी भी सत्याग्रह आश्रम आंदोलन में छत्तीसगढ़ पहुंचे।
छत्तीसगढ़ में झंडा सत्याग्रह
1 मई 1923 से 18 अगस्त 1923 तक झंडा सत्याग्रह आंदोलन चलता रहा। यह सत्याग्रह आंदोलन कांग्रेस के चरखे और तिरंगे झंडे को राष्ट्रीयता का प्रतीक मानकर शुरू हुआ। छत्तीसगढ़ से बहुत से लोग पैदल चलकर नागपुर तक आए। हिन्दू-मुस्लिमों के बीच असहयोग आंदोलन के दौरान कुछ योजनाबद्ध ढंग से दंगे हुए।
1924 में धमतरी में चले आ रहे दंगे को पं. शर्मा के अथक प्रयासों से रोका गया। 23 नवंबर 1925 को पं. सुंदरलाल शर्मा ने राजिम के राजीव लोचन मंदिर में एक बड़े समूह अस्पृश्यों के साथ प्रवेश किया।
छत्तीसगढ़ में सविनय अवज्ञा आन्दोलन
1928 तक देश की राजनीति बहुत खराब हो चुकी थी और कांग्रेस को एक बड़े आंदोलन की जरूरत महसूस हो रही थी। 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पारित किया गया था और सन् 1930 में कांग्रेस ने गाँधी को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का आदेश दिया था।
12 मार्च 1930 को गांधीजी ने डांडी की यात्रा शुरू की और 6 अप्रैल को नमक बनाकर आंदोलन का उद्घाटन किया। पूरे देश की तरह छत्तीसगढ़ भी इसमें शामिल था।
छत्तीसगढ़ में गाँधी जी का आगमन
राष्ट्रपति महात्मा गाँधी भी छत्तीसगढ़ से अछूते नहीं रहे, कालक्रम की दृष्टि से छत्तीसगढ़ में गाँधी प्रवास का विवरण निम्नानुसार है –
प्रथम छत्तीसगढ़ प्रवास
छत्तीसगढ़ के प्रमुख नेता पं. सुन्दरलाल शर्मा दिसंबर 1920 में कलकत्ता रवाना हुए, जहां उन्हें कंडेल ग्राम सत्याग्रह (सन् 1920) की पूरी जानकारी दी गई और आन्दोलन की बागडोर गाँधी जी को सौंप दी गई। 20 दिसंबर 1920 को पं. सुन्दरलाल शर्मा के अनुरोध पर महात्मा गाँधी अपनी पहली छत्तीसगढ़ यात्रा पर उनके साथ रायपुर पहुंचे। महान अली बन्धु मौलाना शौकत अली भी उनके साथ थे।
रायपुर
गांधीजी के पहले छत्तीसगढ़ प्रवास पर रायपुर की जनता ने बहुत उत्साह से उनका स्वागत किया। गांधी जी को देखने के लिए बहुत लोग आए और आज रायपुर में गाँधी चौक नामक स्थान पर एक बड़ी जनसभा में भाषण दिया। इस स्थान का नाम गाँधी चौक पड़ गया, क्योंकि यह गाँधी जी द्वारा संबोधित सार्वजनिक बैठक के बाद से छत्तीसगढ़ के सार्वजनिक कार्यक्रमों का केंद्र बन गया था।
धमतरी एवं कुरुद
21 दिसंबर 1920 को गाँधी जी का कुरुद और धमतरी आगमन हुआ। वे प्रातः 11 बजे रायपुर से खुली मोटरकार से धमतरी पहुँचें। धमतरी पहुँचने पर गाँधी जी का मकई चौक पर बहुत उत्साह से स्वागत हुआ। धमतरी में गाँधी जी का भाषण जामू हुसैन के बाड़े में हुआ। सभा स्थल के प्रवेश द्वार पर इतनी भीड़ थी कि गाँधी जी को प्रवेश करना मुश्किल हो गया।
निष्कर्ष:
निष्कर्ष के रूप में, 19वीं शताब्दी के अंत में छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आंदोलन शुरू हुआ और 1947 तक जारी रहा, जब तक भारत को स्वतंत्रता नहीं मिली। इस आंदोलन में विभिन्न संस्कृतियों, स्थानों और आर्थिक वर्गों के लोग शामिल हुए।
छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय आंदोलन एक क्रांतिकारी लड़ाई थी जिसने न्याय, समानता और स्वतंत्रता को हासिल करने में बहुत कुछ किया। छत्तीसगढ़ राज्य के लोगों को एकजुट करने में इस अभियान ने मदद की, जो स्वतंत्र भारत का मार्ग प्रशस्त करने में मदद की।
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